खाटू श्याम का इतिहास कहानी कथा.

खाटू श्याम मंदिर सीकर (राजस्थान) में स्थित हैं. खाटू श्याम का इतिहास बहुत प्राचीन हैं. आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. सीकर जिला मुख्यालय से 43 किलोमीटर दूर खाटू नामक गाँव में बाबा खाटू श्याम का प्राचीन मंदिर हैं. इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण और बर्बरीक की पूजा होती हैं.

खाटू श्याम में बर्बरीक का सिर हैं जिसे बर्बरीक ने भगवान कृष्ण के कहने पर दान कर दिया था. कलयुग में खाटू श्याम को श्री कृष्ण का अवतार माना जाता हैं. खाटू श्याम को हारे का सहारा कहा जाता हैं क्योंकि जिसकी मनोकामना कहीं पूरी नहीं होती उसको श्याम बाबा पूरी करते हैं. इस लेख में हम आपको खाटू श्याम का इतिहास, कहानी, कथा और खाटू श्याम मंदिर कहाँ स्थित हैं कि पूरी जानकारी देंगे.

खाटू श्याम का इतिहास (History Of Khatu Shyam In Hindi)

परिचय बिंदुपरिचय
नामबाबा खाटू श्याम जी
अन्य नामहारे का सहारा
किसका अवतार हैंभगवान श्री कृष्ण
पिता का नामघटोत्कच
माता का नाममोरवी
कालमहाभारत कालीन
History Of Khatu Shyam Ji

खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से हैं. ये पाण्डु पुत्र भीम के पौत्र थे जिनसे खुश होकर भगवान श्रीकृष्ण ने इनको कलयुग में अपने नाम से पूजनीय होने का आशीर्वाद दिया था. खाटू श्याम जी का नाम बचपन में बर्बरीक था, घर-परिवार,माता-पिता और गुरुजन सभी इनको बर्बरीक नाम से ही जानते थे. भगवान श्री कृष्ण ने इनको अपने घुँघराले बालों की वजह से श्याम नाम दिया था.

खाटू श्याम जी को श्याम बाबा, दीनों का नाथ, कलयुग का अवतार, शीश का दानी, खाटू वाला श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, नील घोड़े का असवार, खाटू नरेश आदि नामों से भी जाना जाता हैं. खाटू श्याम को मोरवीनंदन भी कहा जाता हैं.

खाटू श्याम जी की कहानी

खाटू श्याम जी की कहानी की शुरुआत मध्यकालीन महाभारत से शुरू होती हैं. बलवान भीम के पुत्र का नाम था घटोत्कच। घटोत्कच का विवाह दैत्यराजा मूर (प्रागज्योतिषपुर,आसाम) की पुत्री कामककंटकटा जिसे “मोरवी” के नाम से भी जाना जाता हैं के साथ हुआ था. मोरवी और घटोत्कच ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम था बर्बरीक. बचपन से ही बर्बरीक ने अपनी माता मोरवी और भगवान श्री कृष्ण से युद्ध कलां सिखने लगा.

बर्बरीक ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें तीन बाण दिए. ये तीन बाण उनको तीनों लोकों में विजय दिला सकते थे. यह वरदान पाकर बर्बरीक बहुत खुश हुए. बर्बरीक अपनी वीरता और शक्तियों के लिए जाना जाता था. महाभारत काल में जब कौरव और पाण्डवों के बिच युद्ध शुरू होने वाला था तब बर्बरीक अपनी माता के पास गए और युद्ध देखने की स्वीकृति माँगी। इस पर उनकी माता ने उनसे पूछा की तुम किसकी तरफ से युद्ध लड़ोगे? इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया जो हारेगा मैं उसकी तरफ से युद्ध लडूँगा।

माता से आज्ञा मिलने के बाद बर्बरीक महाभारत का युद्ध देखने के लिए निकल पड़े. भगवान श्री कृष्ण यह सब देख रहे थे. श्री कृष्ण जानते थे की यदि बर्बरीक को नहीं रोका गया तो यह युद्ध का परिणाम पलट देगा। रास्ते में जाते हुए बर्बरीक को श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण करके रोका और पूछा हे बालक तुम अकेले यह तीन बाण लेकर कहाँ जा रहे हो?

तब बर्बरीक ने जवाब दिया की मैं महाभारत का युद्ध देखने जा रहा हूँ और इस युद्ध में जो हारेगा मैं उसका साथ दूंगा।

उपहास पूर्वक श्री कृष्ण ने कहा सिर्फ तीन बाण के सहारे युद्ध लड़ने जा रहे हो, इनसे तो तीन सैनिक भी नहीं मरेंगे।

यह सुनकर बर्बरीक बोल पड़े हे ब्राह्मण यह कोई साधारण बाण नहीं हैं. यह बाण मेरे आराध्य महाप्रभु शिवजी ने मुझे दिए हैं. तीन बाण तो क्या सिर्फ एक बाण एक पल में युद्ध को ख़त्म कर देगा, हालाँकि यह बात श्री कृष्ण पहले से जानते थे. बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण ने उनकी परीक्षा ली.

श्री कृष्ण ने कहा हे बालक इस पीपल के पेड़ के पत्तों को भेद कर दिखाओ तभी बर्बरीक ने एक बाण निकला और अपने आराध्य का ध्यान करते हुए बाण छोड़ा जो पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को भेदता हुआ निकल गया. बर्बरीक ने ब्राह्मण से पूछा आप कौन हो और मुझसे क्या चाहते हो? इस पर उस ब्राह्मण ने जवाब दिया मुझे मुझे दान चाहिए, क्या तुम दे सकते हो ?

बर्बरीक ने कहा माँगो आपको क्या चाहिए? तब ब्राह्मण ने उनका शीश दान में मांग लिया। यह सुनते ही बर्बरीक समझ गया की यह कोई साधारण आदमी नहीं हैं. उसने ब्राह्मण को अपने वास्तविक रूप में आने को कहा.

तब भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में बर्बरीक को दर्शन दिए, अपने गुरु को सामने पाकर बर्बरीक धन्य हो गया. तब बर्बरीक ने रातभर भजन किया और दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान करके अपने हाथों से बर्बरीक ने बिना देरी किए अपना शीश काटकर भगवान के चरणों में रख दिया।

भगवान श्री कृष्ण ने शीश को एक ऊंचे स्थान पर रखा ताकि बर्बरीक महाभारत का युद्ध देख सके. बर्बरीक की दानवीरता से खुश होकर श्री कृष्ण ने उन्हें अपना नाम “श्याम” उपहार स्वरूप भेंट किया. साथ ही आशीर्वाद भी दिया की आने वाले युग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे. जब भी कोई हारा और टूटा हुआ भक्त आपके पास आएगा तुम्हारी पुजा से उसके सब काम पूर्ण होंगे.

श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को एक ऊंचे स्थान पर रख दिया. आज विश्व विख्यात खाटू श्याम मंदिर उसी स्थान पर बना हुआ हैं जहां पर उनका कटा हुआ सिर रखा गया था. खाटू श्याम जी की कहानी बहुत अद्भुद हैं.

खाटू श्याम जी के रहस्य और रोचक तथ्य

खाटू श्याम का इतिहास और कहानी जानने के बाद अब हम उनके बारें रोचक तथ्य जानेंगे-

1 भगवान श्रीराम के बाद खाटू श्याम जी को सबसे बड़े धनुर्धर हैं.

2 बाबा खाटू श्याम को हारे हुए लोगों को सम्बल प्रदान करने वाला माना जाता हैं.

3 प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी या देवउठनी ग्यारस पर खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता हैं.

4 वर्तमान मंदिर की आधारशिला वर्ष 1720 ईस्वी में रखी गई क्योंकि वर्ष 1679 में विदेशी आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ दिया था.

5 प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की छठ से बारस तक खाटू श्याम जी का मेला लगता हैं.

6 बर्बरीक के पास जो तीन बाण थे वो लक्ष्य को भेदकर पुनः उनके पास आ जाते थे.

7 बर्बरीक अर्थात खाटू श्याम जी अपने पिता घटोत्कच से भी अधिक शक्तिशाली और मायावी थे.

8 बर्बरीक ने रातभर भजन किया और दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान करके अपने हाथों से बर्बरीक ने बिना देरी किए अपना शीश काटकर भगवान के चरणों में रख दिया।

9 भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को श्याम नाम दिया और आशीर्वाद दिया की कलयुग में आप मेरे नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे स्मरण मात्र से भक्तों के काम हो जायेंगे।

10 बाबा खाटू श्याम जी, खाटू धाम स्थित श्याम कुंड से प्रकट हुए थे. यहाँ से खोदकर मूर्ति को निकला गया था.

11 खाटू श्याम जी के मूल मंदिर का निर्माण 1027 ईस्वी में रूपसिंह चौहान ने करवाया था.

खाटू श्याम का महत्त्व

खाटू श्याम का महत्त्व कलयुग के साथ-साथ बढ़ेगा क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जैसे-जैसे कलयुग बढ़ेगा तुम्हारा यश और लोगों की आस्था बढ़ेगी। आज बाबा खाटू श्याम हारे का सहारा बनकर भक्तों के काम कर रहे हैं, उनके दुःख-दर्द का हरण कर रहे हैं.

खाटू श्याम का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता हैं की इन्हें कलयुग का भगवान माना जाता हैं. आस्थावान लोगों के हर काम होते हैं और ऐसा कहा जाता हैं की जो व्यक्ति अपने जीवन में अपने दुःखों और कष्टों से गिरा हुआ हैं, अपने जीवन में हार मान चूका हैं उसे एक बार अवश्य बाबा खाटू श्याम जी की शरण में जाना चाहिए।

खाटू श्याम किसके पुत्र थे

महाभारत काल में पाँच पाण्डवों में एक थे भीमसेन या भीम. भीम अतिबलशाली थे उनके एक पुत्र का नाम था “घटोत्कच”. घटोत्कच का विवाह दैत्य राजा मुरी की बेटी मोरवी से हुआ था. मोरवी और घटोत्कच ने एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम था बर्बरीक, यही बर्बरीक आगे चलकर भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से खाटू श्याम नाम से प्रसिद्ध हुए.

अतः यह कह सकते हैं कि खाटू श्याम घटोत्कच और मोरवी के पुत्र थे.

खाटू श्याम के 11 नाम

खाटू श्याम के 11 नाम निम्नलिखित हैं-

[1] बर्बरीक- महाभारतकाल में भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य कन्या मोरवी ने बर्बरीक को जन्म दिया था, यही बर्बरीक आगे चलकर खाटू श्याम नाम से जाने गए.

[2] मोरवीनन्दन- इनकी माता का नाम मोरवी था इसलिए खाटू श्याम जी की मोरवीनंदन नाम से जाना जाता हैं.

[3] बाणधारी- भगवान शिव से प्राप्त तीन बाण जो कि पुरे ब्रह्माण्ड को जीत सकते थे के कारण खाटू श्याम जी बाणधारी कहा जाता हैं.

[4] शीश के दानी – भगवान श्री कृष्ण द्वारा ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक से शीश दान में मांग लिया और बर्बरीक ने अपना शीश दान कर दिया इस कारण उनको शीश का दानी भी कहा जाता हैं.

[5] कलयुग अवतारी- दान भाव को देखकर श्री कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलयुग में आप पूजे जाओगे, इसलिए खाटू श्याम को कलयुग अवतारी कहा जाता हैं.

[6] श्री श्याम- यह नाम बर्बरीक को श्री कृष्ण से मिला था.

[7] लीले घोड़े रा असवार- इनके पास नील रंग का घोड़ा थे इसलिए इन्हें लीले घोड़े रा असवार कहा जाता हैं.

[8] लखदातार- एक कहावत सुनी होगी “देने वाला जब भी देता, देता छप्पर फाड़कर”, जब श्याम बाबा की कृपा होती हैं तब आदमी फर्श से अर्श तक पहुँच जाता हैं. यही वजह हैं की खाटू श्यामजी लखदातार नाम से जाने जाते हैं.

[9] खाटू नरेश- इन्हें खाटू गाँव का राजा माना जाता हैं.

[10] मोरछड़ी वाला- भगवान श्री कृष्ण का प्रिय मोर पंख धारण करने के कारण खाटू श्याम जी मोरछड़ी वाला नाम से भी जाने जाते हैं.

[11] हारे का सहारा- जब व्यक्ति के पास कोई विकल्प ना हो फिर भी बिगड़ा काम बना देने के कारण बाबा खाटू श्याम जी “हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा” कहलाते हैं.

खाटू श्याम जी का जन्म

खाटू श्याम अर्थात बर्बरीक का जन्म कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुआ था, इस वजह से इस दिन अथवा कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवउठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता हैं को खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं.

खाटू श्याम जी के उपाय

सभी समस्याओं के निवारण, सुख-शांति और हारे हुए व्यक्ति निम्नलिखित उपाय कर खाटू श्याम जी की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं. निचे बताई विधि से आप खाटू श्याम बाबा की पूजा कर सकते हैं-

  • खाटू श्याम के उपाय करने या खाटू श्याम जी की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक साफ़-सुथरी जगह पर साफ़ कपड़े पर उनकी प्रतिमा स्थापित कर लें, स्वच्छ्ता का विशेष ध्यान रखें।
  • इसके बाद बाबा को भोग लगाने के लिए प्रसाद, धूपबत्ती और पंचामृत तैयार कर ले.
  • खाटू श्याम जी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर, साफ कपड़े से मूर्ति को पोछ ले.
  • प्रतिमा को स्नान करवाने के बाद अगरबत्ती लगाकर पुष्प अर्पित करें और घी का दीपक जलाएँ।
  • खाटू श्याम पर कच्चा दूध चढ़ाकर सात्विक भोग लगाएँ।
  • बाबा खाटू श्याम जी से क्षमायाचना करें और मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
  • खाटू श्याम जी का प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करे और लोगों को भी बांटें।
  • खाटू श्याम का यह उपाय नियमित रूप से प्रातः करे, निश्चित तौर पर बाबाजी की कृपा प्राप्त होगी।

खाटू श्याम जी के मंत्र

खाटू श्याम जी के यह 10 मंत्र बहुत दिव्य हैं-

(1) ॐ श्री श्याम देवाय नमः

(2) ॐ श्याम शरणम् ममः

(3) ॐ मोर्वये नमः

(4) ॐ महाधनुर्धर वीर बर्बरीकाय नमः

(5) ॐ मोर्वी नंदनाय नमः

(6) ॐ सुहृदयाय नमो नमः

(7) ॐ शीशदानेश्वराय नमः

(8) ॐ खाटूनाथाय नमः

(9) ॐ मोर्वी नंदनाय विद्महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्

(10) ॐ श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेशनाशाय सुहृदयाय नमो नमः

सफलता का श्याम मंत्र

अगर आप जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो तो निचे लिखा सफलता का श्याम मंत्र आपकी हर मनोकामना पूर्ण कर देगा। सफलता का श्याम मंत्र निम्नलिखित हैं-

ॐ श्री श्याम देवाय नमः

खाटू श्याम जी का मंदिर

खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले में स्थित हैं. खाटू श्याम मंदिर जयपुर से 89 किलोमीटर दूर हैं.

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दोस्तों उम्मीद करते हैं बाबा खाटू श्याम का इतिहास, खाटू श्याम की कहानी और खाटू श्याम की कथा पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा, धन्यवाद।