राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ऊंचा-लंबा कद, आंखों में धधकती ज्वाला, चेहरे पर सूर्य के समान तेज़, अदम्य साहस की धनी , शौर्यवान, निडर, निर्भीक और साहसी जैसे विशिष्ठ गुण उनमें बचपन से ही थे।
भारतीय इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो कई ऐसी वीरांगनाओं के नाम आते हैं, जिन्होंने देश की आन बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए।
इतिहास में जब भी वीरांगनाओं की बात होती है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाता है। रानी लक्ष्मी बाई के साथ अहिल्याबाई होलकर, पार्वतीबाई पेशवे, राधिकाबाई पेशवे, धौला गुर्जरी, रामप्यारी गुर्जर और ऐसी ही अनगिनत वीरांगनाओं के नाम दृष्टि पटल पर आ जाते हैं।
लेकिन बहुत कम लोग हैं जो राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) के बारे में जानते हैं। सिर्फ राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ही नहीं ऐसी कई अनगिनत वीरांगना हुई हैं जिनको इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया।
राजकुमारी कार्विका का इतिहास (Rajkumari Karvika History In Hind)-
- नाम Name – राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika).
- किस राज्य से संबंध थे – कठ गणराज्य (पंजाब प्रांत).
- ऊंचाई Height– 6 फीट.
- किसको हराया – सिकंदर.
- सैन्य संख्या – 8500 (सभी वीरांगनाएं).
वैसे तो सिकंदर को महान कहा जाता हैं लेकिन राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) और सिकंदर के बीच हुए 3 युद्धों का जिक्र किया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) बनाम सिकंदर लड़ाई का ज़िक्र करने से पहले हम राजकुमारी कार्विका की सीखी हुई युद्ध प्रणालियों और कलाओं के बारे में बात करेंगे।
1. धनुष और बाण के द्वारा (अस्त्र-शस्त्र और यंत्र मुक्त) युद्ध करना.
2. भाले फेंकना और भाले पर बारूद लगाकर युद्ध करने की प्रणाली ( पाणिमुक्त).
3. आंखों पर पट्टी बांधकर, दोनों हाथों में तलवार और अस्त्र लेकर युद्ध करना ( तांगथा ).
4. हवा की रफ्तार से तलवारबाजी करना.
5. बिना हथियार के युद्ध करना जैसे कि कराटे, मार्शल आर्ट आदि.
भारतवर्ष में जन्म लेना ही अपने आप में गौरव की बात हैं। इस देव भूमि पर जन्म लेने वाले लोग कई असीम योग्यताओं के साथ जन्म लेते हैं।
जब कोई राजकुमारी इतनी युद्ध विद्याओं से निपूर्ण हो भला उससे कौन टक्कर ले सकता हैं। बचपन से ही प्रजा और राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) का आपस में घनिष्ठ संबंध था। दोनों एक दूसरे के लिए जीते थे।
प्रजा बहुत खुश थी कि उनको कार्विका जैसी महान शासिका के शासन का आनंद मिल रहा था जो बहुत ही निर्भीक और साहसी थी। संपूर्ण विश्व पर जीत और शासन का सपना देख रहे सिकंदर का सामना जब इस वीरांगना से हुआ तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
325 ई. पू. की बात हैं अपने कारवां को आगे बढ़ाते हुए सिकंदर पंजाब प्रांत के कठ गणराज्य पर आक्रमण करने के लिए सेना भेजी। शांति से चल रहे राजकार्य में यह पहली बाधा थी, अगर राजकुमारी कार्विका की सेना के बारे में बात कि जाए तो महज 8500 सैनिक थे।
राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) की सेना में सभी वीरांगनाएं थी। जिनमें से मुख्य नाम मृदुला, सौरायमिनी और गरीन्या एवम् जया का नाम आता है। राजकुमारी कार्विका बहुत ही सतर्क थी। जैसे ही सिकंदर के द्वारा किए जाने वाले हमले का राजकुमारी को आभास हुआ, उसने युद्ध की तैयारी कर ली और संपूर्ण सेना को एकत्रित कर युद्ध प्रणाली समझा कर आगे बढ़ी।
राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) की सेना का नाम “चंडीसेना” था। राजकुमारी कार्विका का वैसे इतिहाास में ज्यादा उल्लेख तो नहीं मिलता है, मगर प्राप्त प्रमाणों के आधार पर “चंडीसेना” में 1500 घुड़सवार वीरांगना, पारंपरिक हथियारों वाली 3500 वीरांगनाए पैदल, हाथों में तीर ,कमान और ढाल लेकर चलने वाली वीरांगनाओं की संख्या भी लगभग 3500 के करीब थी।राजकुमारी कार्विका की सेना में युद्ध में भाग लेने वाली वीरांगनाओं की संख्या 8500 थी जबकि सहयोगी दलों को भी साथ मिला कर देखा जाए तो यह संख्या लगभग 12000 थी।
केवल भारत वर्ष ही नहीं यद्यपि संपूर्ण विश्व के इतिहास को उठाकर देखा जाए तो इस तरह की राजकुमारी और सैन्य बल का इतिहास कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि चंडीसेना में सभी वीरांगनाएं थी।
जब दुनिया भर में सिकंदर का डंका बजा हुआ था, तब राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) बड़े ही धैर्य के साथ सूझबूझ का परिचय देते हुए, शांत चित्त से सोच विचार कर अपनी कुशल एवं अचूक रणनीति के तहत एक बहुत ही रहस्यमई चक्रव्यूह तैयार किया, जिससे सिकंदर को पराजित किया जा सके।
वहीं दूसरी तरफ सिकंदर सोच रहा था कि राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) को युद्ध में पराजित करना उसके बाएं हाथ का खेल है।राजकुमारी कार्विका ने युद्ध नीति के तहत योजना बनाई की सिकंदर स्वयं युद्ध करने के लिए नहीं आएगा, इसलिए उसकी सेना को जहां से भी मजबूती मिले उस स्थान से सैनिकों को बाहर की तरफ लेकर आना है। ताकि उनकी शक्ति कम पड़ जाए और इसी का फायदा उठाकर शत्रु दल पर पूरी शक्ति के साथ प्रहार किया जा सके और पराजित किया जा सके।
इस युद्ध नीति को धरातल पर उतारते हुए राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ने सिकंदर की सेना जहां पर एकजुट दिखाई दे रही थी वहां पर अचानक से 300-400 सैनिकों ने बाणों की बौछार कर दी। इससे पहले कि सिकंदर की सेना कुछ समझ पाती उन्हें बहुत बड़ी हानि हो चुकी थी। कहते हैं कि इस युद्ध नीति (ल्यूर द टाइगर ऑफ द डेन अर्थात शेर को उसकी गुफ़ा से बाहर लाना ) को राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) के बाद भी चीन में भरपूर व्यवहार में लाया गया।
सिकंदर की सेना को भारी नुकसान हुआ, इसकी खबर सिकंदर के सेनापति ने जब सिकंदर तक पहुंचाई तो वह बहुत ही आश्चर्यचकित हुआ और सेना को आदेश दिया कि पूरे दलबल के साथ कठ गणराज्य (पंजाब प्रांत) पर आक्रमण कर दिया जाए।
लगभग 35000 सशस्त्र सैनिक बलों के साथ सिकंदर की सेना युद्ध मैदान में पहुंच रही थी। इस बार फिर राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ने अपने बुद्धिबल का परिचय देते हुए महज एक हजार वीरांगनाओं की टुकड़ी युद्ध मैदान में भेजी और उन्हें आदेश दिया कि रास्ते में जितने भी छोटे बड़े पर्वत और घाटियां मौजूद है, वहां पर आप छुप कर बैठ जाइए।
महज 1000 सैनिकों की टुकड़ी ने एक साथ एक स्वर में जो आवाज निकाली, उससे सिकंदर की सेना में यह भ्रम पैदा हो गया कि कठ गणराज्य का सैन्य बल संख्या में बहुत अधिक हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सिकंदर की पूरी सेना तेजी के साथ आगे बढ़ गई और उस स्थान से काफी दूर जा चुकी थी जहां पर सिकंदर के अन्य सैनिक रिजर्व थे।
इस तरह से युद्ध कौशल और शानदार रणनीति के दम पर अपने बुद्धिबल का प्रयोग करते हुए राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ने सिकंदर के इस सैन्य दस्ते को भी पराजित कर दिया। जब सेनापति के माध्यम से युद्ध में हुए इस हाल के बारे में सिकंदर को ज्ञात हुआ तो वह बौखला गया और उसने बर्बर युद्ध पद्धति का सहारा लेने का मानस बनाया।
लगभग 40,000 सिकंदर के सैनिक युद्ध मैदान में गए लेकिन फिर वही इतिहास दोहराया गया और लगभग 30,000 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया। अब तक सिकंदर स्वयं युद्ध मैदान में नहीं आया था लेकिन जिस बुद्धिमता, युद्धकौशल और रणनीति के दम पर राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ने लड़ाई लड़ी इसे देखते हुए सिकंदर स्वयं युद्ध करने के लिए उत्तेजित हो गया।
80000 सैनिकों के साथ सिकंदर युद्ध मैदान में निकला और मोर्चा स्वयं ने संभाला।
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लेकिन कहते हैं ना कि सिर्फ बल के दम पर युद्ध मैदान में जीत हासिल नहीं की जा सकती है। युद्ध जीतने के लिए बुद्धिबल का इस्तेमाल करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।
औरमी युद्ध प्रणाली जिसमें कम सेना होने के बाद भी दुश्मनों को यह भ्रम रहता है कि बहुत अधिक मात्रा में सैनिक तैनात किए हुए हैं।
इस युद्ध नीति के तहत राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) ने सिकंदर को भनक तक नहीं लगने दी कि उनकी सैनिक संख्या बहुत कम है। संभल कर युद्ध लड़ रही सिकंदर की सेना को यह भ्रम था कि राजकुमारी कार्विका की विशाल सेना कहीं चारों तरफ से उनको घेर ना लें।
इस समय राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) और सिकंदर का भी आमना-सामना हुआ था। दोनों हाथों में तलवार लिए बिजली की रफ्तार सेे तेज चमक वाली राजकुमारी दोनों हाथों से दुश्मनों पर ताबड़तोड़ और जानलेवा हमला कर रही थी। उनकी तलवार के बीच में आने वाला चाहे सैनिक हो चाहे अश्व सभी मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे।
जब वह सिकंदर के पास पहुंची तो सिकंदर के एक हाथ पर उसकी तलवार जा लगी, बहुत खून बहने लगा। कहते हैं कि सिकंदर के सीने पर भी निशान हो गए थे और उसकी आंतें कट गई।
सिकंदर के पास बचने का एकमात्र उपाय था युद्ध मैदान को छोड़कर भाग जाना। अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए सिकंदर ने किया भी ऐसा ही, वह सिंध से भी दूर तक अपनी बची हुई सेना के साथ भाग निकला।
2 लाख की विशाल सेना के साथ भारत आए सिकंदर के पास महज 40000 सैनिक बचे। इस ऐतिहासिक की युद्ध में राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) की सेना से ममह 2800 वीरांगनाऐं मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हुई थी। साथ ही सिकंदर की सेना के कुछ सेनापति राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika) की गिरफ्त में आ चुके थे, जिन्हें दंड देते हुए जुर्माना वसूला और सिकंदर ने कठ गणराज्य पर भविष्य में कभी भी हमला नहीं करने का आश्वासन दिया।
भारत में ऐसी ही हजारों वीरांगनाओं ने जन्म लिया है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अति बलशाली योद्धाओं को मिट्टी में मिला दिया, लेकिन इतिहासकारों ने इन्हें हमेशा के लिए इतिहास से मिटा दिया। आज की पीढ़ी राजकुमारी कार्विका (Rajkumari Karvika), रामप्यारी गुर्जर और धोला गुजरी जैसी महान वीरांगनाओं से अपरिचित है।
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रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई का सम्बन्ध।
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ऐसी वीरांगनाओं का इतिहास स्वर्णाक्षरों में लिखा जाना चाहिए पाश्चात्य जगत में महिला योद्धाओं अमेज़न की बात पढ़ते थे जब कि हमारे यहां की वीरांगनाओं ने मातृभूमि कि रक्षा करते आत्मोत्सर्ग किया और उनका इतिहास खोजना पड़े यह दुर्भाग्य की बात है इतिहास की यह विसंगति खटकती है कि आक्रांताओं के इतिहास को बढ़ चढ़ कर लिखा गया उनका महिमा मंडन भी हुआ उनके अत्याचारों को साफ्ट मोड में बिल दिया गया और इन अज्ञात वीरों वीरांगनाओं को कैसे भुला दिया गया इसलिए भारत का इतिहास सांगोपांग सतत अनुसंधान अन्वेषण कर स्वविवेक से पुनर्लेखन की आवश्यकता है जिसमें वाह्य आक्रांताओं के विरुद्ध प्रतिरोध प्रतिकार की भूमिका उभार कर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है और उन हर प्रतिकारों के नायक नायिकाओं का भी विशद वर्णन उनके शौर्य त्याग बलिदान का समावेश कर प्रस्तुत करने की आवश्यकता है जिससे उन सभी हुतात्माओं को सम्मान और न्याय मिले वहीं कृतज्ञ राष्ट्र की सच्चे अर्थों में उनके योगदान के प्रति श्रद्धांजलि होगी वंदे मातरम्
रो
जी साहब, आपका बहुत बहुत धन्यवाद।