History Of Shripatrao Pant Pratinidhi श्रीपतराव पंत प्रतिनिधि का इतिहास

Last updated on May 1st, 2024 at 03:28 am

Shripatrao Pant Pratinidhi / Shriniwasrao Parshuram ने 1687 से 1746 तक मराठा साम्राज्य की सेवा की। श्रीपतराव प्रतितिनिधि या श्रीपतराव पंत प्रतिनिधि के नाम से लोकप्रिय रूप से थे। ये मराठा साम्राज्य के एक जनरल थे। श्रीपतराव का जन्म 1687 में देशप्रतिष्ठान ब्राह्मण परिवार में पंतप्रतिनिधि से हुआ था, जब परशुराम त्र्यंबक पंत सत्ताईस वर्ष के थे।

वह अपने पिता से गहरे प्रभावित हुए। मराठा साम्राज्य के छत्रपति शाहूजी महाराज का परशुराम पंत प्रतितिनिधि के प्रति बहुत सम्मान और सम्मान था।

Shriniwasrao Parshuram/Shripatrao Pant Pratinidhi history और संक्षिप्त परिचय

  • पुरा नाम Full name of Shripatrao Pant Pratinidhi – श्रीनिवास राव परशुराम।
  • जन्म वर्ष Birth Year– 1687.
  • जन्म स्थान Birth place– औंध सतारा ( सातारा, महाराष्ट्र).
  • मृत्यु वर्ष death year– 1746.
  • मृत्यु स्थान death place– औंध सतारा ( सातारा, महाराष्ट्र).
  • पिता का नाम Shripatrao Pant Pratinidhi Father’s nameपरशुराम त्रयंबक पंत प्रतिनिधि
  • साम्राज्य Empire– मराठा साम्राज्य।
  • धर्म Religion– हिंदू सनातन।
  • इनके समय छत्रपतिछत्रपति शाहूजी प्रथम
  • इनसे पहले प्रतिनिधि (Preceded)- परशुराम पंत प्रतिनिधि।
  • इनके बाद प्रतिनिधि (Succeeded)– जगजीवन परशुराम।

उन्होंने छत्रपति शाहू प्रथम के शासनकाल के दौरान प्रधानपति (मुख्य प्रतिनिधि) के रूप में कार्य किया।

1718 में अपने पिता “परशुराम पंत प्रतिनिधि” की मृत्यु के बाद, श्रीपत राव ने मराठा साम्राज्य की रक्षा में छत्रपति शाहू जी महाराज के लिए कई लड़ाइयों में भाग लिया और एक सैनिक के रूप में अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए युद्ध में जीत हासिल की।

1718 में, उन्हें मराठा साम्राज्य के पंत प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया था।

श्रीपतराव न केवल बहुत सक्षम प्रशासक और संगठनकर्ता थे, बल्कि एक महान राजनेता भी थे। जब जब भी छत्रपति शाहू जी को किसी बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता तो ऐसे समय में Shripatrao Pant Pratinidhi उनका मुख्य हथियार था।

अधिकांश इतिहासकारों ने माना कि वाकई में श्रीनिवास राव परशुराम (Shripatrao Pant Pratinidhi) का मराठा साम्राज्य को मजबूत स्थिती में लाने में अभूतपूर्व योगदान रहा हैं।

छत्रपति शाहू महाराज महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने में श्रीपतराव की सलाह पर निर्भर रहते थे।

यदि कुछ अपरिहार्य कारणों के कारण श्रीनिवास राव परशुराम सामान्य समय पर अदालत में उपस्थित नहीं होते थे, तो राजा साहूजी उनके घर जाकर उनसे पूछताछ सलाह-मशवरा किया करते थे।

श्रीपतराव प्रतितिनिधि के मुख्य अभियान-

✓खातव के खिलाफ अभियान ( Campaign against khatav) कृष्णाजी खटावकर 1689 ईस्वी में मुगल सम्राट औरंगजेब से खातव का परगना प्राप्त किया।

कृष्णाजी खटावकर लगातार औरंगजेब का साथ दे रहे थे। छत्रपति शाहूजी महाराज ने उन्हें मराठा साम्राज्य में मिलने का ऑफर भी दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसी के चलते Shripatrao Pant Pratinidhi के नेतृत्व में खाटू की तरफ मराठी से 9 मार्च किया और युद्ध में Krishnaji Khatavkar को परास्त किया।

✓ कर्नाटक अभियान जो की सन 1724 से लेकर 1727 के बीच हुआ था। मराठी सेना ने कर्नाटक में दो मुख्य अभियान किए। एक अभियान का नेतृत्व श्रीपतराव प्रतिनिधि द्वारा किया गया, उनके साथ में पेशवा बाजीराव प्रथम और सरलाशकर जी भी थे, जबकि दूसरे अभियान को पेशवा और सेनापति द्वारा अंजाम दिया गया।

पहला कर्नाटक अभियान 2 वर्षों तक चला। अगर इस अभियान की समय अवधि की बात की जाए तो यह नवंबर 1724 से लेकर मई 1726 तक चलता रहा। प्रथम अभियान फतेह सिंह भोंसले के नेतृत्व में किया गया, जिसमें Shripatrao Pant Pratinidhi के साथ बाजीराव प्रथम भी भाग ले रहे थे।

मगर यह अभियान मराठा साम्राज्य के लिए निरर्थक साबित हुआ। दक्षिण भारत के निजाम ने सामने तो मराठों को समर्थन दिया लेकिन पीठ पीछे वह इसका विरोध कर रहे थे। साथ ही उनके अभियान को विफल करने के लिए प्रयासरत थे। और यही मुख्य वजह रही कि मराठी सेना अपने इस अभियान को पूरा नहीं कर पाई।

दूसरा कर्नाटक अभियान जो कि अक्टूबर 1727 में शुरू हुआ था और बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में किया गया था। श्रीपतराव प्रतिनिधि गुप्त रूप से निजाम के साथ थे निजाम द्वारा उन्हें वरदाह जागीर से पुरस्कृत भी किया, इसलिए बाजीराव ने इस अभियान में प्रतिनिधि का साथ नहीं दिया और उन्होंने Serinaapatnam किले को घेर लिया और mysore और Arcot के शासकों से चौथ और सरदेशमुखी कर वसूला।

Shripatrao Pratinidhi ki Death-

श्रीपतराव प्रतिनिधि का 1746 ईस्वी में सतारा जिले जो कि महाराष्ट्र में स्थित है के औंध नामक स्थान पर मृत्यु हो गई।

इनकी मृत्यु भी मराठा साम्राज्य के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी, इनकी मृत्यु के पश्चात इनके छोटे भाई जगजीवन परशुराम को अगला प्रतिनिधि बनाया गया। यह साहूजी महाराज का फैसला था कि परशुराम त्रयंबक पंत के सबसे छोटे पुत्र जगजीवन को मराठा साम्राज्य का अगला प्रतिनिधि बनाया जाए। जब जगजीवन परशुराम प्रतिनिधि बने तब उनकी आयु 55 वर्ष थी।