महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवन परिचय.

Last updated on December 1st, 2022 at 02:06 pm

महाराणा उदयसिंह महाराणा प्रताप के पिता थे. महाराणा उदयसिंह द्वितीय के पिता का नाम महाराणा सांगा अथवा महाराणा संग्राम सिंह था. 4 अगस्त 1522 ईस्वी को जन्मे महाराणा उदयसिंह द्वितीय महज 5 वर्ष के थे, तब उनके पिता महाराणा सांगा का निधन हो गया.

जैसे तैसे इनकी माता रानी कर्णावती ने इनका पालन पोषण किया लेकिन जब महाराणा उदयसिंह द्वितीय महज 12 वर्ष के थे तभी गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया गया. इस आक्रमण के दौरान उनकी माता महारानी कर्णावती ने जोहर कर लिया.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवनी बढ़ने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें.

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महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास और जीवनी (Maharana Udai Singh II History & Biography In Hindi).

नाममहाराणा उदयसिंह द्वितीय.
जन्म तिथि4 अगस्त 1522 ईस्वी.
जन्म स्थानचित्तौड़गढ़ दुर्ग.
मृत्यु तिथि28 फरवरी 1572.
मृत्यु स्थानगोगुन्दा.
पिता का नाममहाराणा सांगा या महाराणा संग्राम सिंह.
माता का नाममहारानी कर्णावती.
भाईमहाराणा विक्रमादित्य सिंह.
पत्नियाँ23 (जिनका विवरण इस लेख में हैं).
पुत्रमहाराणा प्रताप (अन्य का उल्लेख भी इस लेख में हैं).
पुत्रियाँचैन कंवर, सूरजदे बाई, जसवंतदे बाई, लिखमी बाई, बाईजीराज, अमर कंवर, हर कंवर.
शासकमेवाड़.
 शासनअवधि 32 वर्ष.

आज से लगभग 500 वर्ष पूर्व महाराणा उदयसिंह द्वितीय का जन्म महाराणा सांगा और महारानी कर्णावती के घर में हुआ था. महारानी कर्णावती के 2 पुत्र थे. बड़े पुत्र का नाम महाराणा विक्रमादित्य और छोटे बेटे का नाम उदयसिंह था. महाराणा उदय सिंह का बचपन बहुत ही कष्टपूर्ण रहा. जब उदयसिंह मात्र 5 वर्ष के थे तब इनके पिता महाराणा सांगा का देहांत हो गया और 12 वर्ष की अल्पायु में ही इनकी माता कर्णावती भी वीरगति को प्राप्त हुई.

मेवाड़ साम्राज्य के लिए यह समय बहुत ही खराब रहा बहुत सारी उथल-पुथल देखने को मिली. दासी पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी और उदयसिंह द्वितीय की हत्या करने के लिए भी आतुर था. ताकि उसके रास्ते में आने वाले सभी कांटो को दूर किया जा सके और वह मेवाड़ का शासक बन सके.

दासी पुत्र बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की निर्मम हत्या कर दी और स्वयं को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया. हालांकि अधिकतर सामंतों और सरदारों ने उन्हें मेवाड़ का शासक और चित्तौड़गढ़ का उत्तराधिकारी नहीं माना.

बनवीर उदयसिंह द्वितीय की भी हत्या करना चाहता था ताकि भविष्य में उसे किसी भी तरह की समस्या का सामना ना करना पड़े. बनवीर उदयसिंह को मारने की साजिश रचने लगा. महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास पढ़ने के बाद आप उनके संघर्ष के बारें में जान पाएंगे.

पन्नाधाय द्वारा उदयसिंह द्वितीय की रक्षा

जब पन्नाधाय को यह पता चला की बनवीर उदय सिंह को मारने के लिए बेचैन है, तो उन्होंने सोचा कि यदि उदय सिंह (Maharana Udai Singh II) को मौत के घाट उतार दिया गया तो वर्षों से चला आ रहा सिसोदिया वंश का अंत हो जाएगा और मेवाड़ के असली वारिस खत्म हो जाएंगे.

बहुत सोच विचार करने के पश्चात पन्नाधाय ने अपने पुत्र की बलि देकर मेवाड़ के भावी महाराणा उदयसिंह द्वितीय की रक्षा करने की योजना बनाई. उदयसिंह और पन्नाधाय के पुत्र चंदन की आयु लगभग समांथी. एक रात की बात है उदय सिंह सो रहे थे तभी बनवीर बहुत तेजी के साथ उनके कक्ष की तरफ बढ़ रहे थे. जब यह नजारा पन्नाधाय ने देखा तो वह तुरंत दौड़कर अंदर गई और उदयसिंह द्वितीय की जगह उनके पुत्र चंदन को सुला दिया.

दासी पुत्र बनवीर उदय सिंह के कक्ष में पहुंचे और आव देखा न ताव सोए हुए बच्चे पर तलवार से ताबड़तोड़ वार कर दिए और वहां से चला गया. बनवीर निश्चिंत हो गया था की अब उसके रास्ते में एक भी रोड़ा नहीं आने वाला है.

दूसरी तरफ अपने पुत्र की मृत्यु के बाद भी पन्नाधाय रोना सकी. अपने कलेजे पर पत्थर रखकर पन्नाधाय रात के अंधेरे में उदय सिंह द्वितीय को लेकर जंगल के रास्ते से कुंभलगढ़ की तरफ निकल पड़ी.

सुबह होते ही पूरे मेवाड़ में उदयसिंह की मृत्यु की खबर आग की तरह फैल गई. माता पन्नाधाय उदयसिंह द्वितीय को लेकर कुंभलगढ़ पहुंची, जहां पर किलेदार आशा देपुरा ने लगभग 6 वर्षों तक कुंवर उदयसिंह का पालन पोषण किया और उन्हें योग्य बनाया.

कुंवर उदयसिंह द्वितीय के जीवित होने की खबर

मेवाड़ की जनता दासी पुत्र बनवीर से परेशान थी. तभी वर्ष 1537 ईस्वी में एक खबर मेवाड़ में आग की तरह फैल गई और यह खबर थी कि मेवाड़ के सच्चे वारिस, महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर उदयसिंह (Maharana Udai Singh II) जीवित है. यह खबर सुनते ही मेवाड़ के सरदारों, सामंतों और जनता के रोंगटे खड़े हो गए. इस समय कोई भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था.

यह वही समय था जब दासी पुत्र बनवीर स्वयं को एक सच्चा राजपूत साबित करने की निरंतर कोशिश कर रहा था लेकिन मेवाड़ के ज्यादातर सरदार और सामंत बनवीर से नाराज थे. दरअसल बनवीर को कोई भी राजपूत नहीं मानता था.

एक किस्सा बहुत ही प्रचलित है 1 दिन की बात है दासी पुत्र बनवीर ने सभी सरदारों और सामंतों को भोजन पर आमंत्रित किया भोजन के समय उन्होंने कोठारिया के रावत खान पुरबिया चौहान की थाली में झूठा खाना परोसते हुए खाने को कहा!

लेकिन उन्होंने भोजन नहीं किया और वहां से उठ कर चले गए इतने में बनवीर समझ गया और रावत खान को आवाज लगाई कि “क्या तुम मुझे असली राजपूत नहीं मानते हो”?

तभी रावत खान ने पीछे मुड़कर कहा अब तक तो तुमसे कह नहीं पाए लेकिन यही असली वजह है. इतना सुनने के बाद बनवीर आग बबूला हो गया और वहां पर मौजूद सभी सरदार बिना खाना खाए वहां से चले गए.

जब बनवीर ने कुंवर उदयसिंह के जीवित होने की खबर सुनी तो उसे एकाएक यकीन नहीं हुआ. लेकिन जब उसे पूरा वाकया पता चला कि पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को कुंवर उदयसिंह के पालने में सुला दिया था और बनवीर ने कुंवर उदयसिंह द्वितीय की जगह चंदन को मौत के घाट उतार दिया, तो उसे बहुत पछतावा हुआ.

अब मेवाड़ के सभी सामंत और सरदार कुंवर उदयसिंह को मेवाड़ का शासक बनाने के लिए प्रयास करने लगे.

कुंवर उदयसिंह द्वितीय का राज्याभिषेक और विवाह

रावत खान के साथ-साथ मेवाड़ के मुख्य सरदार और सामंत कुंभलगढ़ पहुंचे. महाराणा उदय सिंह इस वर्ष वक्त महज 15 वर्ष के थे. तभी सलूंबर के रावत साईं दास चुंडावत, केलवा के रावत जग्गा चुंडावत, बागोर के रावत सांगा और अन्य सरदार कुंभलगढ़ पहुंचे और कुंवर उदय सिंह को मेवाड़ का सच्चा उत्तराधिकारी मानते हुए राज्याभिषेक कर दिया.

मेवाड़ के सरदारों ने मारवाड़ के अखेराज सोनगरा चौहान को बुलाया और कहा कि आप की पुत्री का विवाह महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh II) के साथ कर दे क्योंकि यही असली महाराणा है. लेकिन अखेराज सोनगरा चौहान को संकोच था कि बनवीर ने अपने हाथों से कुंवर उदय सिंह की हत्या की थी. इस पर सभी सरदारों ने मां पन्नाधाय वाला किस्सा सुनाया और महाराणा उदयसिंह द्वितीय का झूठा खाकर यह साबित कर दिया कि यही मेवाड़ के वास्तविक महाराणा है.

इसके बाद अखेराज सोनगरा चौहान ने महाराणा उदय सिंह को ही मेवाड़ का वास्तविक वारिस मानते हुए अपनी पुत्री जयवंता बाई का विवाह उनके साथ कर दिया.

बनवीर और महाराणा उदयसिंह द्वितीय के बीच युद्ध

1540 ईस्वी में महाराणा उदयसिंह और दासी पुत्र बनवीर के बीच मावली में युद्ध लड़ा गया था. इस युद्ध में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया लेकिन दासी पुत्र बनवीर स्वयं युद्ध में भाग ना लेकर कुंवर सिंह तंवर के नेतृत्व में सेना भेजी. महाराणा उदय सिंह की तरफ से राव कुंपा और राव जेता जैसे बलशाली योद्धा लड़ रहे थे. वही बनवीर की ओर से इस युद्ध में रामा सोलंकी व मल्ला सोलंकी ने भाग लिया.

दोनों सेनाओं के बीच मावली में एक भयंकर युद्ध हुआ इस युद्ध के समय महाराणा उदयसिंह द्वितीय की आयु महज 18 वर्ष थी. महाराणा उदय सिंह की सेना ने पराक्रम दिखाते हुए कुंवर सिंह तंवर के नेतृत्व में लड़ रही दासी पुत्र बनवीर की सेना को पूरी तरह से पराजित कर दिया.

महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh II) ने मावली के युद्ध में बनवीर के सेना को बुरी तरह से पराजित करने के बाद बनवीर के साथी मल्ला सोलंकी के आधिकारिक क्षेत्र ताणा पर धावा बोल दिया. लगभग 1 माह की तनातनी के पश्चात मल्ला सोलंकी मारा गया.

अब महाराणा उदय सिंह का अगला लक्ष्य था चित्तौड़ पर विजय प्राप्त करना क्योंकि उदयसिंह द्वितीय को सामंतों और सरदारों ने मिलकर मेवाड़ का महाराणा तो घोषित कर दिया लेकिन दरअसल अभी तक चित्तौड़ पर शासन बनवीर का था.

महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh II) नई चाल चलते हुए बनवीर के प्रधान चील मेहता को अपनी तरफ मिला लिया और रात का समय देखकर महाराणा उदय सिंह और उनके सैनिकों ने किले पर प्रवेश किया इस भयंकर युद्ध में कई राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय की इस जीत के बाद उदय सिंह जी का रुतबा बहुत बढ़ गया. चित्तौड़गढ़ दुर्ग में विजय के पश्चात उनका भव्य स्वागत किया गया.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय का परिवार (Maharana Udai Singh II Family)

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा महाराणा उदयसिंह द्वितीय के पिता का नाम महाराणा सांगा और माता का नाम रानी कर्णावती था. महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने अपने जीवन काल में 23 रानियों से विवाह किया था.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय की पत्नियाँ

[1] जयवंता बाई जी.

[2] सज्जाबाई सोलंकी जी. 

[3] धीरबाई भटियाणी जी.

[4] राजबाई सोलंकी जी.

[5] करमेती बाई राठौड़ जी. 

[6] वीरबाई झाली जी .

[7] कंवरबाई राठौड़ जी. 

[8] कंवरा बाई जी .

[9] लखमदे बाई जी. 

[10] कनक बाई जी.

[11] प्यार कंवर जी.

[12] जीत कंवर जी.

[13] वीर कंवर जी.

[14] गनसुखदे बाई जी. 

[15] सुहागदे बाई जी.

[16] लाड़ कंवर जी.

[17] सैवता बाई जी.

[18] किशन कंवर जी.

[19] गोपालदे बाई जी.

[20] जीत कंवर जी.

[21] कंवर बाई खिंचन जी.

[22] लेल कंवर जी.

[23] लाल कंवर जी.

महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय की पुत्रियां

चैन कंवर

[2] सूरजदे बाई.

[3] जसवंतदे बाई.

[4] लिखमी बाई.

[5] बाईजीराज.

[6] अमर कंवर.

[7] हर कंवर.

महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय के पुत्र

[1] महाराणा प्रताप.

[2] कुंवर शक्ति सिंह.

[3] वीरमदेव.

[4] जगमाल.

[5] सागर सिंह.

[6] अगर.

[7] चंदा सिंह.

[8] शार्दुल सिंह.

[9] सुल्तान सिंह.

[10] कल्याण मल.

[11] महेश दास.

[12] लूणकरण सिंह.

[13] कान्हा.

[14] मानसिंह.

[15] कुंवर साह.

[16] कुंवर पंचायन.

शेरशाह सूरी का चित्तौड़ पर आक्रमण

1540 ईस्वी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठे. इस समय मेवाड़ की स्थिति बहुत खराब थी, जिसे जैसे तैसे महाराणा उदय सिंह ने सुधारा. कुछ ही वर्षों पश्चात वर्ष 1544 ईस्वी में अफगान के शासक शेरशाह सूरी ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया. इस दशा में शेरशाह सूरी ने सबसे पहले जहाजपुर को अपने कब्जे में ले लिया.

मेवाड़ पर आक्रमण करने से पहले शेरशाह सूरी ने मारवाड़ को पराजित किया था. मारवाड़ को पराजित करने में शेरशाह सुरी को पसीना आ गया और यही वजह थी कि शेरशाह सूरी मेवाड़ पर एकदम से आक्रमण नहीं करना चाहता था. दूसरी तरफ महाराणा उदय सिंह भी अभी युद्ध नहीं चाहते थे क्योंकि मेवाड़ की स्थिति अच्छी नहीं थी.

महाराणा उदय सिंह ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए शेरशाह सुरी से समझौता कर लिया और चित्तौड़ दुर्ग को उन्हें सौंप दिया. अब महाराणा उदय सिंह द्वितीय नाम मात्र के महाराणा थे क्योंकि उनके पास अधिकार नहीं के बराबर थे.

अफगान शासक शेरशाह सूरी ने चित्तौड़ दुर्ग पर उसके सेनापति शम्स खान को तैनात कर दिया. वर्ष 1545 ईस्वी में शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई, जिसका फायदा उठाकर महाराणा उदय सिंह ने शम्स खान को मौत के घाट उतार कर चित्तौड़ दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय द्वारा उदयपुर की स्थापना

महाराणा उदयसिंह द्वितीय और सभी सामंतों ने मिलकर निर्णय लिया कि चित्तौड़गढ़ का दुर्ग हालांकि बहुत मजबूत है लेकिन यह एक पहाड़ी पर बना हुआ है जिसके चलते यदि इस को चारों तरफ से घेर लिया जाए तो फिर हमारे पास कोई चारा नहीं बचता है, इसलिए उन्होंने उदयपुर बसाने का निर्णय लिया.

वर्तमान समय में उदयपुर सिटी पैलेस के अंदर निर्मित नवचोकिया महल, नेका की चौपाल, मर्दाना महल, राज आंगन आदि का निर्माण महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय द्वारा किया गया था. वहीं दूसरी तरफ महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने पिछोला झील का जीर्णोद्धार करवाया था.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय और अकबर का युद्ध

वर्ष 1567 ईस्वी में मेवाड़ के शासक महाराणा उदयसिंह द्वितीय और अकबर के बीच युद्ध हुआ था. अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ दुर्ग को दूसरी बार घेर लिया गया. इससे पहले भी अकबर ने चित्तौड़ का घेराव किया लेकिन महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने उसे असफल कर दिया.

लगभग 4 महीनों तक अकबर ने घेराव किया अंततः महाराणा उदयसिंह द्वितीय अपने कुछ अंग रक्षकों के साथ दुर्ग छोड़कर निकल गए, जैसे ही यह खबर अकबर को मिली अकबर ने किले पर आक्रमण कर दिया. राजपूती सेना और अकबर के बीच भयंकर युद्ध हुआ. इस युद्ध में कई वीर राजपूत सैनिक वीरगति को प्राप्त और यह युद्ध अकबर ने जीत लिया.

युद्ध जीत लेने के बाद भी अकबर को कुछ भी हाथ नहीं लगा क्योंकि राजकोष पहले ही खाली हो चुका था.

महाराणा उदयसिंह द्वितीय की मृत्यु कैसे हुई? (Maharana Udai Singh II death)

बड़ी ही विषम परिस्थितियों में महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने लगभग 32 वर्षों तक मेवाड़ पर शासन किया. महाराणा उदय सिंह ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ से बदलकर उदयपुर कर दी. 28 फरवरी 1572 ईस्वी के दिन महज 49 वर्ष की आयु में महाराणा उदय सिंह द्वितीय का गोगुंदा में देहांत हो गया.

दोस्तों उम्मीद करते हैं महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदयसिंह द्वितीय का इतिहास (Maharana Udai Singh II History & Biography In Hindi) और जीवनी आपको अच्छी लगी होगी,धन्यवाद.